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बेरोजगार युवा

एक सपना कुछ कर जाने का जिसके पीछे भागता रहा लेकिन असफलता ही किस्मत में लिखा हो तो कोई क्या कर सकता। उड़ते हुए पंछी के पंख पर अधिक बोझ लाद दिया जाए तो पंख होकर भी उसे उड़ने का सौभाग्य प्राप्त नही होगा। एक बच्चा जब जन्म लेता है तो हंसता है , रोता है , खुद खेलता है और मां निहारती रहती है । कहा कोई उसे पिटता है या चुटकुला सुनाता है, कुछ तो बात होगा उसके पीछे। जीवन का सबसे अनमोल पल मै उसे ही मानता हू क्योंकि किसी से कोई मतलब नही होता खुद मे मगन और वो खुद को भी मालूम नही होता। जैस जैसे उम्र बढ़ती वैसे बोझ बढ़ता चला जाता है। ये अनमोल जिवन मे जैसे जैसे बढ़ते है वैसे मोह भी बढ़ता है और वैसे वैसे जिवन को कठिन और व्यस्त बना देती है । जब हम शिशु अवस्था मे होते है तो अपने जैसा सामने वाला का बराबरी मे गुजरता है 

बाधाए किस्मत में

ये कहानी एक ऐसी बच्ची की है जो होनहार होने के बाद भी जीवन उसे ऐसी उलझाती चली गई की वो सुलझाते सुलझाते थक गई मानो अब सांस लेना भी मुस्किल हो गाया हो। बाधाए किस्मत में  चंदू  और चंदा  की जोड़ी तो अच्छी है पूरा समाज में चर्चा था जब वह ब्याह होकर ससुराल आई। सास की बात जो खतम होने से पहले ही काम खत्म कर देती थी। जिससे सब सास अपनी बहुओं से कहती रहती की बहु हो तो चंदा जैसी, जिससे बहुओं की आपसी चर्चा में चंदा के प्रति जलन की भावना हो गई थी। लेकिन इसमें बेचारी चंदा का कोई कसूर नही था। चंदू बहुत गरीब परिवार और विधवा मां के गर्भ से जन्मा था। जिसके पिता का प्यार कभी नही मिला पाया था क्योंकि उसके जन्म से दो माह पहले ही उसके पिता का मृत्यु मजदूरी करते समय मशीन के चपेट मे आने से हो गया था। चंदू गरीब था लेकिन मन में अमीर बनकर मरने का सपना था । दिन रात मेहनत करके घर मे कम खर्च कर पैसा बचत करके रखता जिससे होने वाले बच्चे को सही शिक्षा देकर अच्छा नौकरी दिलाना चाहता था जिससे वो गरीबी से निकल सके। सावन माह की वो दिन जहां वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रहा था, चारो तरफ पानी ही पानी था। कच्ची माकन ...

जौरागी से बटवाड़ा

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 एक जमाने मे गांव के जाने माने बड़े जमींदार कहे जाने वाले नंदू की दूर - दूर तक बहुत पुछ थी। कोई भी पंचायत और सलाह के लिए लोग पूछा करते थे । नंदू के एक सगा बड़ा भाई भी थे जिनका नाम किशोर था जो सिपाही मे कार्यरत थे, इस लिए घर की सारा जिम्मेदारी नंदू पे थी। नंदू के तीन संतान हुए जिसमे दो बेटा मोहन, सोहन और एक बेटी गूंजा थी और किशोर के एक संतान हुए जिनका नाम राम था। परिवार बहुत ही खुशाल था जिसे देख आस-परोस के लोग अपने परिवार को दिखा कर वैसा बनने को समझाते थे। चारो भाई बहन साथ रहना खाना खेलना मानो चारो एक ही मां के संतान हो और दोनो मां भी सभी को एक समान प्यार देती थी।  समय के साथ अब बच्चे कुछ बड़े हो गए थे उन्हे अब शिक्षा अर्जित करना आवश्यक था , चारो बच्चे को एक स्कूल में दाखिला कराया गया। उन चारो मे राम बहुत ही होनहार विद्यार्थी थे जो हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते थे और मोहन एवं गूंजा भी पढ़ने मे ठीक ठाक थे जबकि सोहन को पढ़ाई में मन नहीं लगता था । सोहन को अपने पिता के साथ खेती करने में मन लगता था। पिता के मना करने के बाद भी सोहन पढ़ाई छोड़ खेती में पिता के हाथ बटाने चले...

एक मां की सिंदूर

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कोई ऐसा शब्द जो मन को पुरा झगजोर देता है लेकिन सच को झुटलाया नही जा सकता है। ऐसा ही एक शब्द एक बच्ची अपनी मां से अंधेरी रात के करीब दस बजे किया जब उनकी मां का आंख लग रहा था। मां बार बार उसे सोने के लिए बोल रही थी और वो बिस्तर पर इधर से उधर कर रही थी। तभी अचानक ईशा के मुख से एक सवाल निकला जो सुन कर उसकी मां की नींद उड़ गई और पुरा शरीर कांप उठा । मां आप दूसरे की मां जैसा लाल सिंदूर अपने ललाट पर क्यो नही लगाती ? अचानक मां को ए शब्द सुनकर ऐसा लगा मानो शरीर में करेंट लग गई फिर भी अनसुनी करने का नाटक किया और कहा बहुत रात हो गई है अभी सो जाओ मुझे बहुत नींद आ रही है और करवट बदल कर आंख बंद कर लिया। ईशा फिर बोली बताओ न मां मुझे जानना है मुझे बहुत अच्छा लगता है ऊन लोगो को देख कर तुम क्यों नहीं लगाती? मां को पुरानी बीती सारी बातें मन को अंदर ही अंदर झगजोर रहा था उन्हें ईशान के साथ बिताई पल बहुत याद आने लगी और आंख भर आई गला सूखने लगा और भीतर ही भीतर कलेजा फट रहा था लेकिन अपनी बेटी को कैसे बताए । पिता के उसके जन्म से पहले ही जाने के समय जब ईशा चार महीने की गर्भ मे थी तब से आज दस वर्ष की हो गई तब तक ...