बाधाए किस्मत में

ये कहानी एक ऐसी बच्ची की है जो होनहार होने के बाद भी जीवन उसे ऐसी उलझाती चली गई की वो सुलझाते सुलझाते थक गई मानो अब सांस लेना भी मुस्किल हो गाया हो।

बाधाए किस्मत में 

चंदू और चंदा की जोड़ी तो अच्छी है पूरा समाज में चर्चा था जब वह ब्याह होकर ससुराल आई। सास की बात जो खतम होने से पहले ही काम खत्म कर देती थी। जिससे सब सास अपनी बहुओं से कहती रहती की बहु हो तो चंदा जैसी, जिससे बहुओं की आपसी चर्चा में चंदा के प्रति जलन की भावना हो गई थी। लेकिन इसमें बेचारी चंदा का कोई कसूर नही था।

चंदू बहुत गरीब परिवार और विधवा मां के गर्भ से जन्मा था। जिसके पिता का प्यार कभी नही मिला पाया था क्योंकि उसके जन्म से दो माह पहले ही उसके पिता का मृत्यु मजदूरी करते समय मशीन के चपेट मे आने से हो गया था। चंदू गरीब था लेकिन मन में अमीर बनकर मरने का सपना था । दिन रात मेहनत करके घर मे कम खर्च कर पैसा बचत करके रखता जिससे होने वाले बच्चे को सही शिक्षा देकर अच्छा नौकरी दिलाना चाहता था जिससे वो गरीबी से निकल सके।

सावन माह की वो दिन जहां वर्षा रुकने का नाम नहीं ले रहा था, चारो तरफ पानी ही पानी था। कच्ची माकन की कमजोर छत से पानी टपक रहे थे। चंदू इस बार पैसा बचत करने के चक्कर मे अपना घर के छप्पर भी नही छबाए था क्योंकि उसे इतनी बारिश की उम्मीद नही थी और वो पिता बनने वाला था इस लिए पैसा बचत करके रक्खा था ताकि कोई परेशानी हो तो अस्पताल में पैसे की कमी न हो।

ये कड़कती बिजली और आंधी के साथ बारिश में अचानक चंदा को बहुत दर्द होने लगा मानो अब दम निकल जाएगा और इस दर्द के बीच ठाठ से पानी कभी पैरो पर तो कभी शरीर के विभिन्न अंग पर टपक रहा था। चंदा दर्द से चंदू को ऐसा पकड़ी थी मानो नाखून से चमड़ी उधेड़ देगी लेकिन पत्नी के पीड़ा के आगे ये पीड़ा चंदू को बेअसर था। तभी एक रोता हुआ बच्चा का जन्म हुआ जिसे पाकर दोनों बहुत खुश हुए और उसका नाम खुशी रक्खे।

खुशी बहुत ही होनहार बच्ची थी। अभी जीवन शुरू ही हुआ था कि माता का साथ छूट गया। अब घर का सारा काम खुशी संभालने लगी। चंदू को ये देखा नहीं जाता था लेकिन करे भी तो क्या करे। ये सब देख कर वो दूसरी शादी करने का सोचा जिससे खुशी को पढ़ाई लिखाई में कोई दिक्कत न हो और मां का प्यार भी मिल जाएगा। चंदू कभी कभी यह भी सोचता था कि अगर सही औरत नहीं मिली तो अभी से भी ज्यादा दिक्कत खुशी को झेलना पड़ेगा 

क्या होता है उसे पता ही चला था कि कब परिवर्तित हो गई पता ही नही चला, मानो वर्षा उसी गांव में हो जहां कच्चा मकान अधिक हो 

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