जौरागी से बटवाड़ा

एक जमाने मे गांव के जाने माने बड़े जमींदार कहे जाने वाले नंदू की दूर - दूर तक बहुत पुछ थी। कोई भी पंचायत और सलाह के लिए लोग पूछा करते थे । नंदू के एक सगा बड़ा भाई भी थे जिनका नाम किशोर था जो सिपाही मे कार्यरत थे, इस लिए घर की सारा जिम्मेदारी नंदू पे थी। नंदू के तीन संतान हुए जिसमे दो बेटा मोहन, सोहन और एक बेटी गूंजा थी और किशोर के एक संतान हुए जिनका नाम राम था। परिवार बहुत ही खुशाल था जिसे देख आस-परोस के लोग अपने परिवार को दिखा कर वैसा बनने को समझाते थे। चारो भाई बहन साथ रहना खाना खेलना मानो चारो एक ही मां के संतान हो और दोनो मां भी सभी को एक समान प्यार देती थी। समय के साथ अब बच्चे कुछ बड़े हो गए थे उन्हे अब शिक्षा अर्जित करना आवश्यक था , चारो बच्चे को एक स्कूल में दाखिला कराया गया। उन चारो मे राम बहुत ही होनहार विद्यार्थी थे जो हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते थे और मोहन एवं गूंजा भी पढ़ने मे ठीक ठाक थे जबकि सोहन को पढ़ाई में मन नहीं लगता था । सोहन को अपने पिता के साथ खेती करने में मन लगता था। पिता के मना करने के बाद भी सोहन पढ़ाई छोड़ खेती में पिता के हाथ बटाने चले...